चीन और हिंदुस्तान

Chinese President Xi Jinping (L) and Indian Prime Minister Narendra Modi attend the group photo session at 2017 BRICS Summit in Xiamen, Fujian province in China, September 4th 2017.(KENZABURO FUKUHARA/KYODONEWS/POOL)

चीन और हिंदुस्तान, विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियां, विश्व की दो महत्वपूर्ण शक्तियां, विश्व के सर्वाधिक जनसंख्या वाले 2 राष्ट्र, समकालीन समय, 1947 / 1949 से, वर्तमान स्वरूप धारण किए, एशिया के बहुत बड़े भू भाग पर अवस्थित दो देश, बहुत सी समानताओं के बावजूद भी, कुछ मूलभूत भिन्नताओं के कारण, समय-समय पर तकरार और तनाव के घेरे में आ जाते हैं। जहां एक ओर सनातन धर्म संस्कृति और, “वसुधैव कुटुंबकम” की अवधारणा का परिपोषण करने वाले शांतिप्रिय भारतवासी, बहुत चोट खाने के बाद भी, किसी की ओर आंख उठाकर देखना पसंद नहीं करते तथा रामराज्य की उत्कंठा के चलते लोकतंत्र पर विश्वास रखते हैं।

वहीं दूसरी ओर सनातन धर्म से ही उपजे, भगवान बुद्ध के मार्ग के विस्तारित क्षेत्र , “चीन के साम्यवादी शासक गण” अपने सामान्य नागरिकों के मूलभूत अधिकारों की ही अवहेलना करते हैं। राज्य के पड़ोसियों के हितों की उपेक्षा करते हैं। मुक्त क्षेत्रों पर अतिक्रमण करते हैं और अपनी संकुचित सोच के आधार पर साम्राज्यवादी नीतियों का अनुसरण करते हैं। इसी के चलते उसने तिब्बत को हड़पा, भारत पर 1962 में आक्रमण करके अक्साई चीन पर आधिपत्य जमा लिया। अभी भी जब तब, सीमा क्षेत्रों पर, चीन की सेना, सीमा रेखा का उल्लंघन करने की कोशिश में लगी रहती हैं।

भारत के संदर्भ में चीन की बुरी नियत को समझने की कोशिश करते हैं। पिछले कई दशकों से हम पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद जैसे छद्म युद्ध का सामना कर रहे हैं। यहां पर भी चीन हर तरीके से पाकिस्तान की मदद कर रहा है ।चाहे वह आर्थिक रूप से हो अथवा तकनीकी रूप से । इसके अलावा विश्व समुदाय के विरुद्ध जाकर, हाफिज सईद, सलाउद्दीन और मसूद अजहर जैसे आतंक के पर्याय को आतंकवादी मानने से ही इनकार कर रहा है।

चीन को भारत की प्रतिष्ठा भी सहन नहीं हो रही है इसीलिए पूरे विश्व समुदाय की सहमति के बावजूद भी भारत के सुरक्षा परिषद का सदस्य बनने में अड़ंगा डालते हुए अपने,” वीटो पावर ” का इस्तेमाल करता है।

दक्षिण एशिया के छोटे-छोटे देशों में, चीन अपनी धन शक्ति के दम पर, विकास के नाम पर, घुसकर अपनी विचारधारा को थोप रहा है इसका सबसे सटीक उदाहरण विश्व का एकमात्र हिंदू राष्ट्र नेपाल है। जहां, अपुष्ट हवालों से कहा जाता है कि चीन ने ही अप्रत्यक्ष रूप से, संपूर्ण राजपरिवार की हत्या करवाई थी। क्योंकि नेपाल में राजा और राज परिवार को, वहां की जनता भगवान से कम नहीं मानती थी। इस राजशाही के खत्म होने के बाद अब वहां पर माओवादी विचारधारा की सरकार है। परिणाम स्वरुप भारत और नेपाल के संबंध भी अब उतने मधुर नहीं हैं। और तो और चीन द्वारा पोषित यह कटु मानसिकता, नक्सलियों के रूप में हिंदुस्तान के कई राज्यों में फैली हुई है और साम्यवादी पार्टियों के आंचल तले, मानवाधिकार के नाम पर, सेना और सरकार के रूटीन कार्य को भी बाधित करती है। पिछले तीन-चार दशकों में चीन आर्थिक महाशक्ति के रूप में अपनी पहचान बना रहा है। अपनी विशाल जनसंख्या के लिए रोजगार उत्पन्न करा रहा है। पूरे विश्व में, “मेड इन चाइना” की धूम है, और भारत भी इसका अपवाद नहीं है ।

चीन और भारत की स्थिति को बेहतर तरीके से समझने के लिए कुछ आंकड़ों के माध्यम से एक तुलनात्मक अध्ययन भी आवश्यक है। भारत का क्षेत्रफल लगभग 3200000 वर्ग किलोमीटर है, तो चीन का भारत से लगभग 3 गुना अधिक 96.40 लाख वर्ग किलोमीटर है। चीन का सकल राष्ट्रीय उत्पाद लगभग 11.22 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है तो हमारा लगभग 2.45 मिलियन बिलियन अमेरिकी डॉलर है। इसके अलावा विदेशी मुद्रा भंडार भी चीन के पास हम से 10 गुना अधिक लगभग 318 5916 मिलियन अमेरिकी डॉलर है जबकि हमारा 386539 मिलियन अमेरिकी डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार है। चीन का रक्षा बजट भी भारत से लगभग 3 गुना अधिक है। चीन का रक्षा बजट 166 .107 बिलियन अमेरिकी डॉलर है जो उसके सकल राष्ट्रीय उत्पाद का 2% है, भारत का रक्षा बजट 45.785 बिलियन अमेरिकी डॉलर है जो भारत के सकल राष्ट्रीय उत्पाद का 2.5% है। चीन के सैनिक बल की संख्या 22. 85 लाख है, भारत के सैनिक बलों की संख्या 13 लाख है।

इन आंकड़ों से इतना तो सहज ही स्पष्ट है कि चीन की ताकत का आधार उसकी मजबूत अर्थव्यवस्था ही है।

वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की है और दूसरे नंबर की अर्थव्यवस्था में चीन का नाम आता है। 130 करोड़ की जनसंख्या वाले, लोकतांत्रिक राष्ट्र भारतवर्ष की अर्थव्यवस्था सातवें नंबर पर आती है। जो कि जनसंख्या एवं संसाधनों के हिसाब से काफी पीछे है। पिछले कुछ वर्षों से भारत भी, विभिन्न योजनाओं एवं नीतियों के द्वारा अपनी अर्थव्यवस्था को तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना रहा है। मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, स्टार्टअप, मुद्रा लोन आदि के माध्यम से स्वरोजगार एवं विदेशी निवेश को भी काफी प्रोत्साहित कर रहा है। पिछले दशक में सुप्त राष्ट्रवाद एवं सुस्त विकास के कारण और बढ़ते भ्रष्टाचार और लालफीताशाही की आदतों के चलते अभी भी, भारत, खुद अपेक्षाकृत कम उत्पादन करके, रोजगार संकुचित कर रहा है और सस्ते के लालच में, अपने इतने बड़े बाजार विस्तार के माध्यम से चीन को धनाढ्य बनाए जा रहा है। फिर चीन उसी धन का उपयोग भारत के ही विरुद्ध कर रहा है।

आज के आधुनिक युग में युद्ध का नुकसान सीमांत क्षेत्रों में ही नहीं होता, अपितु दुश्मन की मिसाइलें देश के महानगरों से लेकर सुदूर क्षेत्रों में भी विध्वंस करके तबाही मचाती हैं। देश सुरक्षित है तो हम, हमारा परिवार , हमारा धन और मान सुरक्षित है , नहीं तो युद्ध की स्थिति में परमाणु क्षमताओं एवं जैविक हथियारों के चलते, न तो इस जीवन का भरोसा है और ना ही भावी पीढ़ियों के जीवन और स्वास्थ्य का चीन से शुरू हुए कोरोना वायरस संकट ने, पूरे विश्व के मानव को स्वास्थ्य के युद्ध में झोंक दिया है । भारत विश्व के देशों में अपने प्राचीन धरोहरों, आयुर्वेद एवं योग के साथ-साथ हाइड्रो क्लोरो क्वीन दवाई उपलब्ध करवा रहा है । आशंका है कि इस महामारी के चलते, कुटिल रीति नीति का प्रयोग करते हुए चीन विश्व की एक नंबर की अर्थव्यवस्था बन सकता है। अमेरिका और यूरोपीय देशों में इस महामारी ने जान माल के साथ अर्थव्यवस्था को भी बहुत नुकसान पहुंचाया है। अपनी आन बान और शान के लिए जिस प्रकार महाराणा प्रताप को युद्ध में सशक्त बनाने के लिए भामाशाह ने अपनी धन दौलत अर्पित कर दी थी और भीलों ने संपूर्ण सहयोग किया था। उसी प्रकार आज की परिस्थिति में भी भामाशाह रूपी उद्यमी व एवं व्यापारी गण सहित देश के सभी नागरिकों की जिम्मेदारी है, कि राष्ट्र हित के लिए वे दृढ़ निश्चय करें कि उन्हें कितना ही आर्थिक नुकसान उठाना पड़े किंतु वे चीनी उत्पाद नहीं खरीदेंगे,चाहे वह कितना ही बढ़िया सुंदर और सस्ता क्यों ना हो। व्यवसायी अपने अनुबंधों और स्टॉक को कम से कम 8-10 महीनों के लिए होल्ड करेंगे । यह निर्णय जनता को स्वयं करने होंगे,क्योंकि खुली अर्थव्यवस्था एवं अंतरराष्ट्रीय नियम कायदों के तहत, सामान्य परिस्थितियों में, कोई भी सरकार किसी देश विशेष के साथ व्यापार को प्रतिबंधित नहीं कर सकती।

आंकड़ों के अनुसार भारत चीन व्यापार लगभग 70 .72 बिलियन डॉलर का होता है। भारत की तरफ से निर्यात के रूप में लगभग 9.01 बिलियन डॉलर का सामान चीन में भेजा जाता है जबकि 61. 71 बिलियन डॉलर का सामान चीन से आयात किया जाता है अर्थात लगभग 500000 करोड रुपए का सामान चीन भारत में बेचता है। यह विशाल राशि, अगर बहुत संकुचित अथवा लगभग नगण्य हो जाए तो बड़ी से बड़ी अर्थव्यवस्था की नींव हिल जाएगी ।यह स्थिति तभी आ सकती है जब हम सब किसी भी चीनी सामान को ना खरीदें। चीन जैसे रावण की ” नाभि ” का अमृत कलश उसकी मजबूत अर्थव्यवस्था है उसको नष्ट करने वाला “रामबाण” भारत की जनता के हाथ में है। आइए हम सब प्रण करें, आज और अभी से चीनी सामान की खरीद और उपयोग बंद कर दें, ताकि विजयदशमी से पहले ही, उसे पूर्ण रूप से भस्म कर सकें।
वंदे मातरम।