संतुलन

घिरा बादल
रुका क्यूं है
झूमती हवा
थमी क्यूं है
प्रातः बेला
ठिठकी क्यूं है
खोजते-सोचते
उलझते सुलझते
विचारों को
थाम लिया
उड़ती-चहकती, चिड़ियों ने
महकती-मुस्काती, कलियों ने
रिमझिम पड़ती, बुंदियों ने
और समझाया
चुपके से
कि
ना हो कोई, अतिक्रमण
जीवन-मर्म , कर्म-संतुलन ।

– विधु गर्ग