अद्भुत

तारीफ की तो बात है
अद्भुत औरत जात है

पानी, भरती
रोटी, सेकती
दवा भी लाती
पत्नी धर्म निभाती

नखरे, उठाती
“नेट” से स्वाद-सजाती
“पैट” भी संभालती
ममता में, आधी हुई जाती

कभी, खुद के
शौक, ना हुए पूरे
स्वाद, भूले – बिसरे
सेहत भी, खाए हिचकोले

सारी दुनिया, भूली
पति- पुत्र में, डूबी
जिंदगी, धुआं – धुआं
स्त्री -पुरुष, विमर्श, कहां

सचमुच
तारीफ की तो बात है
अद्भुत औरत जात है ।।