वर्तमान परिदृश्य में ,” राष्ट्र सेविका समिति “

वर्तमान परिदृश्य में , किसी उद्बोधन में प्रयुक्त ” राष्ट्र सेविका समिति ” के यह वाक्य विस्मय तो उत्पन्न करते ही हैं , किन्तु यही वाक्य समिति का सम्पूर्ण तत्व भी समाहित किये हुए हैं। ” राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ” व संघ संस्थापक परम पूजनीय “डॉ हेडगेवार जी ” से प्रेरणा ले कर संघ स्थापना (सन १९२५ ) के ११ वर्ष के उपरान्त , वर्धा में वंदनीया मौसी जी ” श्रीमति लक्ष्मीबाई केलकर जी ” ने सन १९३६ की विजयादशमी के दिन “सर्वे भवन्तु सुखिना, सर्वे भवन्तु निरामया ” के लक्ष्य को सामने रखते हुए ” तेजस्वी राष्ट्र के पुनर्निर्माण” हेतु ” सर्वव्यापी सर्वस्पर्शी ” भाव के साथ ” राष्ट्रिय सेविका समिति का गठन किया।

  • सुशीला , सुधीरा , समर्था
  • मातृत्व , कृतत्व , नेतृत्व
  • सर्वे भवन्तु सुखिना , सर्वे सन्तु निरामया स
  • सर्वव्यापी , सर्वस्पर्शी
  • शिव भावेन , जीव सेवा

संघ का कार्य , पुरषों में आत्म चेतना ,हिन्दू संस्कृति के पुनुरुत्थान के साथ , राष्ट्र प्रेम की जाग्रति करना था , जो कि तत्कालीन परिस्तिथियों में अपरिहार्य था। स्वतंत्रता आंदोलन के परिपेक्ष्य में अंग्रेज़ों द्धारा , पृथकतावादी नीतियाँ अपनायी जा रहीं थीं, ताकि जनसाधारण एक जुट होकर उनका सामना न कर सके या फिर अखंड भारत टुकड़े टुकड़े हो जाये और स्वतंत्रता के उपरान्त भी दीन – हीन अवस्था में ही , विश्व मानचित्र पर नज़र आए। परम पूजनीय “डॉ हेडगेवार जी ” ने अपने सहयोगियों के साथ, इस स्थिति को पहचान कर और सभी ने मिलकर , १००० साल की गुलामी में जकड़ी हिन्दू संस्कृति में भी आत्म गौरव भरने तथा राष्ट्र सम्मान , एकता और अखंडता की रक्षा के लिए “राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ” की स्थापना की।

संघ की विचारधारा से प्रेरित, लोकमान्य बालगंगाधर तिलक के जोशीले भाषणों व लेखों से उत्साहित , व गाँधी जी के प्रवचनों से प्रभावित होकर वं मौसीजी ने स्त्रियों में भी यही हिन्दू संस्कार और राष्ट्र प्रेम की अलख जगाने का बीड़ा उठाया।

लगभग १००० साल की गुलामी के बावजूद भी हिन्दू संस्कृति को जिन्दा रखने का श्रेय भारतीय महिलाओं को ही जाता है, किन्तु इतने समय के दमन चक्र और शोषण के कारण बहुत सी कुरीतियों में फंसी भारतीय महिलाओं को उनमें से निकालकर, वास्तव में आत्म गौरव के साथ अपनी संस्कारित शक्ति का समाज में दर्शन कराना भी जरूरी था।

स्त्री परिवार की धुरी होती है , समाज और राष्ट्र की शक्ति होती है। वंदनीया मौसी जी…

  • स्त्री शक्ति का आवाहन किया
  • स्त्री संस्कारों का गुणगान किया
  • स्त्री कर्तव्यों का अनुसंधान किया
  • स्त्री विचार शक्ति से राष्ट्र पोषण किया।
  • स्त्री विचार शक्ति से राष्ट्र पोषण किया।

वंदनीया मौसी जी, गाँधी जी के राम राज्य की अवधारणा से प्रेरित हो कर रामायण का गहन अध्ययन किया फिर रामायण – प्रवचनों के माध्यम से छोटे छोटे स्त्री समूह में राष्ट्र संस्कार की ज़िम्मेदारी के बीज बोये। धीरे धीरे, राष्ट्र – भ्रमण के साथ साथ , यह समूह एक दूसरे से जुड़ते चले गए और भारतीय संस्कृति और राष्ट्र जागृति की डोर से ” राष्ट्र सेविका समिति ” रुपी माला में गुंथते गए। भारत सनातन राष्ट्र है , जो केवल मानव ही नहीं अपितु चराचर सृष्टि के कल्याण का विचार संस्कार देता है। ” प्रदा प्रसादात तव एव अत्र ” पूर्व पुण्य के कारण ही ” चन्दन इस देश की माटी “, ” सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा ” में जन्म मिलता है। “यह नारी अबला बेचारी ” के आवरण में लिपटी , नारी शक्ति को , आत्म ज्ञान , आत्म निर्भरता व आत्म रक्षा से सबला बनाने के लिए ” शाखा ” व अन्य प्रकल्पों से जोड़ा गया। नियमित शाखा जाने वाली महिलाओं का आत्म विश्वास देखते ही बनता है। शाखा वह स्थान है जहाँ स्त्री का स्त्री से ही परिचय कराया जाता है। (स्त्री का खुद उससे परिचय कराया जाता है।)

“राष्ट्र का पुनुरुत्थान करने वाली मातृ शक्ति हूँ मैं , ज्ञान विज्ञान दायिनी सरस्वती माता , वैभवदायिनी लक्ष्मीमाता , दुष्टता संहारिणी दुर्गामाता हूँ मैं।” नियोजन , व्यवस्थापन , कुशलता , आत्मविश्वास , समरसता , इत्यादि सीखते हुए , व्यायाम , योगासन , अनुशासन , समयपालन इत्यादि करते हुए शरीर, मन, बुद्धि, आत्मा का समन्वित विकास राष्ट्र सेवा के लिए ही, ऐसा सहज संकल्प विकसित करने का स्थान है, समिति का शाखा मैदान। जहाँ मैं नहीं तू नहीं का अनोखा संस्कार प्राप्त करते करते , “आत्मनो मोक्षार्थ, जगद हिताय च” का अनोखा संस्कार प्राप्त हो जाता है। मन में आश्चर्य होता है कि , वही हूँ मैं – जो पहले मुख दुर्बल व संकोची थी? मातृत्व , कृतत्व , नेतृत्व को पोषित करने के लिए सुशीला , सुधीरा , समर्था स्त्री में स्वावलंबन व् सशक्तिकरण प्रदान करने का कार्य ही ” राष्ट्र सेविका समिति ” की शाखा में किया जाता है। जीवन रथ का रथी पुरुष है और महिला सारथी , जीवन रथ को सही दिशा में ले जाने के लिए भी “सारथी स्त्री” को अधिक संयमी और समझदार होने की आवश्यकता है। परिवार मैं कर्तव्य प्रमुख है , कर्तव्यों की परिणीति स्वरूप अधिकार स्वतः ही प्राप्त होते हैं। परिवार का केंद्र बिंदु , “स्त्री ” वात्सलयमयी माँ है। समाज व राष्ट्र भी परिवार के ही विस्तार है। स्त्रीशक्ति , मातृशक्ति के रूप में राष्ट्र और समाज में संस्कार और सकारात्मक दिशा देने का सामर्थ्य रखती है।

अपने प्रत्येक कार्य में परिवारहित , समाजहित , व राष्ट्रहित देखना ही समिति सेविका की दिनचर्या है। शिव भावेन जीव सेवा ” उनका जीवन मंत्र है। अन्य लोगो की आवश्यकताओं पर सम्मान पूर्वक ध्यान देना ही सच्ची सेवा है। राष्ट्र में रहने वाले सभी नागरिक, पशु पक्षी , वृक्ष पहाड़ , नदियाँ सागर , आदि सृष्टि के सभी घटकों का संरक्षण , राष्ट्र सेवा है। भारत की संस्कृति और जीवनदृष्टि ही, राष्ट्र की आत्मा व प्राणशक्ति है। इसी को पुष्ट करते हुए आगे बढ़ने और अन्य लोगों को आगे बढ़ाने का कार्य ” समिति सेविकाएं ” सहज ही कर लेती हैं। राष्ट्रीय संस्कृति का गौरव बढ़ाते हुए , सामाजिक स्तर पर , शारीरिक व आर्थिक सुरक्षा के साथ साथ आपसी पारस्परिकता व अपनत्व को बढ़ाते हुए , राष्ट्र भक्ति में समर्पण की भावना को दृढ़ करना ही समिति सेविका का उददेश्य व राष्ट्र सेवा है। ” सर्वव्यापी – सर्वस्पर्शी” समिति न केवल भारत में उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक फैली हुई है, अपितु विश्व के बहुत सारे देशों में भी , अपनी संस्कार संस्कृति का विस्तार कर रही है। वास्तव में अमीर से अमीर महिलाएं , अनपढ़ महिलाएं , पढ़ी – लिखी महिलाएं और काम – काजी महिलाएं राष्ट्र हित में “सेविका” के रूप में, समान आदर प्राप्त करती हैं।

सेविका के रूप में उनका मुख्य कार्य यही है कि :-

  • स्वयं को भारत के प्रतिनिधि के रूप में परिष्कृत करें।
  • स्वयं को उपयुक्त, सशक्त, व प्रभावी रूप में स्थापित करें।
  • देश के प्रति स्त्री के रूप में उनकी क्या भूमिका है, स्वयं महसूस करें।
  • “मैं एक माँ”, मातृत्व भाव जगाता है।” मातृभाव से राष्ट्र व समाज को देखने की दृष्टि विकसित करें। “स्त्री माता के रूप में समाज व देश की निर्माता होती है।

सन १९३६ से वं मौसीजी एवं वं सिंधु ताई जी के नेतृत्व में राष्ट्र सेविका समिति से जुड़ी महिलाएं और सेविकाओं के संपर्क में आने वाली महिलाएं , बिना किसी आंदोलन या मोर्चा निकाले , केवल और केवल मात्र अपने व्यवहार से ही , कुरीतियों को ख़तम कर रहीं हैं और महिलाओं के मातृत्व – भाव को परिवार के साथ साथ समाज और राष्ट्र स्तर पर विस्तार दे रही हैं, जागरूकता फैला रही हैं

  • “क्या माँ अपना कर्तव्य पूरा कर रही है ?”
  • “क्या वह सही संस्कार दे रही है ?”
  • “क्या अपनी भूमिका अच्छे से निभा रही है ?”
  • “क्या परिवार के सदस्यों को प्रभावित करने में सक्षम है ?”
  • “क्या धर्म के साथ खड़े होने की क्षमता है ?”
  • “क्या अधर्म के विरुद्ध डटे रह सकते हैं ?”

स्त्री परवार की केंद्र बिंदु है , अगर वह दृढ़ इच्छा शक्ति रखती है तो उसके घर रुपी किले में न तो कोई गलत कार्य होगा और न ही उसके घर में कोई बेईमानी का पैसा आएगा , स्वतः ही काला बाजार और भ्रष्टाचार कम हो जायेगा। समिति ने अपने अन्य प्रकल्पों के माध्यम से महिलाओं में आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए विभिन्न स्थानों पर उद्योग प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किये हैं। कन्याओं की शिक्षा के समुचित प्रबंध के लिए छात्रावास बनाये हैं। सामान्य महिलाओं में आत्मविश्वास व जागरूकता बढ़ाने के लिए समिति द्धारा समय समय पर आत्मरक्षा शिविर , प्रशिक्षण शिविर , वर्ग इत्यादि आयोजित किये जाते हैं।