कालगणना जटिल एवं विषद व्याख्या का विषय है।

कालगणना मुख्यतः खगोलीय पिंडों के आधार पर विश्व में अलग-अलग ढंग से की जाती रही है।

कालगणना, पंचांग, कैलेंडर आदि, सूर्य – चंद्र ,ग्रह – नक्षत्र इत्यादि को, समय के साथ जोड़कर, सामान्य जनसाधारण को , मौसम ,तीज- त्यौहार इत्यादि की जानकारी देकर, जीवन को सहज बनाने की प्रक्रिया का आधार हैं । प्रतिवर्ष एक नया पंचांग और कैलेंडर ,देखते ही लगभग पूरे वर्ष की कार्ययोजना तैयार होने लगती है।

वास्तव में, कैलेंडर और पंचांग की काल गणना करना बहुत ही जटिल एवं विषद व्याख्या का विषय है। इस काल गणना का आधार क्या है, यह समझना भी बहुत जरूरी है । किस आधार पर की गई काल गणना क्यों अधिक श्रेष्ठ व अधिक वैज्ञानिक है , यह जानना भी जरूरी है।

कालगणना मुख्यतः खगोलीय पिंडों के आधार पर विश्व में अलग-अलग ढंग से की जाती रही है।

भारत में भी अति प्राचीन समय से, सटीक एवं वैज्ञानिक रूप से कालगणना, पंचांग के माध्यम से की जाती रही है, जो आज भी, “ग्रैगेरियन अंग्रेजी कैलेंडर” की तुलना में, कहीं अधिक वैज्ञानिक एवं तथ्यात्मक जानकारी देने में सक्षम है।

भारत में भिन्न-भिन्न स्थानों पर, भिन्न-भिन्न आधार पर , वर्तमान में भी, वैज्ञानिक तरीके से पंचांग बनाए जाते हैं । जो न केवल वहां के स्थानीय निवासियों के जीवन को सुनियोजित और सरल बनाते हैं, अपितु खगोलीय पिंडों की सूक्ष्म से सूक्ष्म जानकारी एवं स्थिति बताने में भी सक्षम है। इस आधार पर भारत में प्रचलित विभिन्न पंचांगों का अलग-अलग अध्ययन एवं शोध करना एवं फिर तुलनात्मक विश्लेषण इस विषय के महत्व को समग्रता के साथ प्रतिपादित कर सकता है।

सर्वप्रथम हम पंचांग का शाब्दिक अर्थ समझने का प्रयास करते हैं। पंचांग का मतलब समय की कालगणना है , अर्थात समय की गणना को पांच अंगों के आधार पर किया जाता है । यह 5 अंग इस प्रकार हैं…

  1. तिथि (lunar day)
  2. दिवस (solar day)
  3. नक्षत्र (Asterism)
  4. योग (Planetary joining)
  5. कर्णम (Astronomical period)

भारत में, पूर्व से पश्चिम एवं उत्तर से दक्षिण, स्थान – काल के आधार पर, कई तरह के पंचांग निकाले जाते हैं। जो खगोलीय पिंडों की स्थिति को भी स्पष्ट करते हैं। मोटे तौर पर तो पंचांग लगभग एक सा ही कार्य करते हैं, कालगणना का । किंतु उनकी कार्यप्रणाली में क्या अंतर है यह भी एक शोध का विषय हो सकता है।
भारत में पंचांग वैदिक काल से प्रयोग किए जा रहे हैं । युधिष्ठिर के समय के पंचांग भी, अभी तक मान्य हैं । यही बात इनकी वैज्ञानिकता को प्रमाणित भी करती है। भारत के सभी त्योहार, रितुएं और मास – तिथि इत्यादि इन्ही पंचागों के आधार पर निर्धारित होती हैं। जिन त्यौहार, व्रत – उपवास, रितु, मास – तिथि आदि का उल्लेख रामायण, महाभारत आदि में किया गया है । वे आज भी, उसी प्रकार, पूरे भारत में मनाए जाते हैं। यह बातें भी, भारतीय पंचांग की, कालगणना की, वैज्ञानिकता को सिद्ध करती हैं।

भारत में वर्तमान में भी लगभग 300 तरीके के पंचांग तैयार किए जाते हैं। जो अपने अपने क्षेत्र में लोकप्रिय एवं अधिकारिक रूप से मान्य भी हैं। भारत सरकार का, पर्यावरण एवं पृथ्वी मंत्रालय का, एक विभाग 1950 से पंचांग संबंधी, कार्य देखता है । जिसका मुख्यालय कोलकाता में है। भारतीय काल गणना की वैज्ञानिकता की, बारीकियां समझने एवं वैज्ञानिकता स्पष्ट करने की दृष्टि से, संपूर्ण भारत से निकलने वाले विभिन्न पंचांगों का, अध्ययन एवं शोध तथा तुलनात्मक विश्लेषण, निश्चित रूप से आज की युवा पीढ़ी को आकर्षित करने के साथ-साथ गौरवान्वित भी करेगा।