कोरोना प्रभाव

कोरोना महामारी के कारण, वर्ष 2020 की शुरुआत से ही, संपूर्ण विश्व, अपने अलग-अलग क्षेत्रों के, नागरिकों की जान बचाने के लिए जूझ रहा था। मार्च आते-आते, इस महामारी ने लगभग सारे संसार को ही, अपनी गिरफ्त में ले लिया। कोरोना ने इस समय तक, विश्व के कई देशों में ,अपना भयावह स्वरूप दिखाना शुरू कर दिया। सरकारों की मुख्य चुनौती, अपने नागरिकों की सुरक्षा की आ गई थी। इसलिए सभी आर्थिक, सामाजिक एवं धार्मिक गतिविधियों पर रोक लगाते हुए, सरकारों को, अपने – अपने देशों में लॉक डाउन का निर्णय लेना पड़ा। कोरोना से युद्ध करने के लिए, पुलिस, प्रशासन, स्वास्थ्य कर्मी, स्वच्छता कर्मी इत्यादि “कोरोना योद्धाओं”, के अलावा सभी नागरिकों को, अपने – अपने घर में ही, रहने का निर्देश दिया गया । कोरोना संकट को, रोकने के लिए, घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी गई।

कोरोना संकट के कारण, अपने अपने घरों में बंद लोगों को, देश-दुनिया और समाज से जोड़ने के लिए, संचार क्रांति ने बहुत बड़ी भूमिका अदा की। टेलीविजन, टेलीफोन, कंप्यूटर, इंटरनेट, मोबाइल, संचार क्रांति के ही संवाहक हैं । इस क्रांति ने, अमीर- गरीब, साक्षर – निरक्षर, गांव – शहर इत्यादि का भेद मिटाकर, “मोबाइल फोन” लगभग सभी के हाथों में पहुंचा दिया, जहां “इंटरनेट” की उपलब्धता एवं “सोशल मीडिया” की सक्रियता ने सभी को एक साथ जोड़ रखा है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में टेलीविज़न चेनल्स तो शुरु से ही लोकप्रिय हैं ।अब तो फायर स्टिक, के साथ नेटफ्लिक्स, प्राइम वीडियो आदि की भी दीवानगी भी बढ़ती जा रही है।

यूट्यूब चैनल, अन्य गतिविधियों के साथ-साथ घर बैठे लोगों को बहुत सी चीजें सिखाने का भी सुंदर माध्यम बन चुका है। “लाॅकडाउन” के मद्देनजर, बाहर के खाने-पीने की जगहों पर भी पाबंदी है और घर से निकलने पर भी। जायका-पसंद लोगों ने खुद ही घर पर, इस माध्यम का, बेहतरीन उपयोग करना शुरू कर रखा है और अपनी अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन इस लॉक डाउन में कर दिया है।

इस कोरोना काल में, “अपना हाथ जगन्नाथ” वाली उक्ति भी हर घर में चरितार्थ हो रही है। विभिन्न व्यस्तताओं में, दबे – कुचले “शौक” फिर से मुखर हो रहे हैं और इष्ट मित्रों को, साझा भी किए जा रहे हैं।

कोरोना काल में राष्ट्रप्रेम भी जागृत नजर आ रहा है। परंपराओं के प्रति सकारात्मक भाव भी उत्पन्न हो रहा है। योग, प्राणायाम, आयुर्वेद ,शाकाहार, शुचिता इत्यादि को व्यवहार में लाया जा रहा है । आडंबर रहित एवं सीमित आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ भी, जीवन में सुख व संतोष का अनुभव किया जा रहा है। इस संकट काल ने, पूंजीपतियों की अपेक्षा, श्रमिकों की शक्ति का एहसास करवाया है। गांवों के सरल जीवन का महत्व दिखाया है। शहरों की मारामारी के भ्रम को उजागर किया है। इंसानों को, बाजारीकरण के, जंजाल से मुक्त कराया है। इस विपत्ति काल में भी सदा की भांति, अपवादों को छोड़कर, सामाजिक सौहार्द, समाज सेवा ,एकजुटता एवं जिम्मेदारी की भावना का परिचय, सामान्य नागरिकों ने दिया है। संयम और अनुशासन से इस समय को जिया है । जनता की समझदारी ने ही, उम्मीद का दिया भी, रौशन किया है ।

“कोविड – 19”, की वजह से हुए लॉक डाउन के कारण पूरे विश्व की, अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इस स्थिति से कोई भी देश अछूता नहीं है। चाहे वह देश विकसित राष्ट्रों की सूची में आता हो अथवा अविकसित । उत्पादन, वितरण इत्यादि आर्थिक क्रियाएं बहुत ही संकुचित हो चुकी हैं। परिणामस्वरूप रोजगार और क्रयशक्ति में भी कमी नजर आ रही है। सरकारों को, स्थानीय आधारों पर ही, समाधान निकालने होंगे। निश्चित रूप से, सामान्यतः सभी देशों को, व उनके नागरिकों को, कठिन दौर से गुजरना पड़ेगा। धीरज और संयम के साथ संतुलन बनाकर ही चलना पड़ेगा। कोरोना की विपत्ति ने, “इंसान” को संयम, संतुलन, अनुशासन, आशा, विश्राम, परिश्रम ,आस्था, विश्वास ,प्राचीन ,अर्वाचीन इत्यादि के चक्र में, उलझा कर, घरों में कैद करके, “प्रकृति” को, पुनः नवजीवन संचरण का अवसर प्रदान किया है ।

मानव निर्माण की संरचना के ,”पंच महाभूत”, स्वच्छ होने की प्रक्रिया में संलग्न है ।

  • वायु स्वच्छ हो रही है।
  • पृथ्वी स्वच्छ हो रही है।
  • अग्नि स्वच्छ हो रही है।
  • जल स्वच्छ हो रहा है।
  • आकाश स्वच्छ हो रहा है।

सूर्य की हानिकारक किरणों को रोकने के लिए, ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाला, “ओजोन लेयर का छिद्र”, भी अब ठीक होने लगा है। शहरों से पर्वत श्रृंखलाएं नजर आने लगी हैं। नदियों और सागर के नीचे सुंदर दृश्य दिखाई देने लगे हैं। “रातें” , तारों भरी चुनरी में, झिलमिलाने लगी हैं। “कोरोना”का साफ-साफ संदेश यही है कि

“अति का भला न बरसना , अति की भली न धूप
अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप ।”

मानव को, “कोरोना संकट” से सबक लेकर, निश्चित करना चाहिए कि, वह सदैव, जीवन और प्रकृति में संतुलन बनाकर रखें। आधुनिकता के अंधानुकरण और विकास के नाम तथा ताकत के दंभ पर कहीं कोई अतिक्रमण ना हो तभी, “मानव जीवन” सुखी और संतुष्ट रह सकता है ।