अखबार वाला, दूध वाला, कचरे वाला, सब्जी वाला, प्रेस वाला, कामवाली, बर्तन वाली ,सफाई वाली, मालिश वाली न जाने कितने ,”वाले और वाली ” आंख खुलते ही , दिनचर्या शुरू होने के साथ-साथ, “जमा – घटा” होने लगते हैं, कि कभी इस बात पर ध्यान ही नहीं जाता कि, सामान्य जीवन में समाज की, इन इकाइयों का क्या महत्व है लॉकडाउन के चलते अचानक यह एहसास होने लगा कि चाहे व्यक्ति परिवार के साथ रह रहा है या किसी शहर में अकेला। वास्तव में केवल परिवार या अकेले के दम पर ही सामान्य जीवन नहीं जिया जा सकता, अगर समाज की अलग-अलग इकाइयां सहयोग ना करें। लॉकडाउन में मूलभूत आवश्यकताओं जैसे बिजली ,पानी ,टीवी ,स्वास्थ्य ,राशन इत्यादि की सुविधाओं को उपलब्ध कराने की प्राथमिकताओं पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है, ताकि व्यक्ति अपने-अपने घरों में परिवार के साथ सामान्य जीवन व्यतीत कर सकें।
चूंकि लॉक डाउन में, सभी लोगों को अपने अपने घरों से निकलने की आजादी नहीं है इसलिए बहुत से लोग अलग-अलग तरीकों से अपने को व्यस्त तो रख ही रहे हैं चाहे वे अपने सोशल मीडिया ग्रुप्स में चुटकुले, मेंटल क्विज , आशंकाएं , समाधान, गॉसिप इत्यादि में जुटे हैं । या फिर भिन्न-भिन्न टेलीविजन चैनलों में दिखाई जाने वाली ताजातरीन तस्वीरें और ब्रेकिंग न्यूज़ पर नजरें गड़ा कर रखने के साथ-साथ, वहां होने वाली बहसों को भी पूरी तन्मयता के साथ सुन – समझ कर , अपनी निर्णय देने की क्षमता को भी परिष्कृत कर रहे हैं । इसके अलावा आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक संसाधनों जैसे टेलीविजन के अलावा कंप्यूटर , लैपटॉप ,टैब, स्मार्टफोन इत्यादि पर ,अपनी अपनी पसंद की , नई – पुरानी फिल्मों को निपटा कर यानि देखकर फिल्म उद्योग के कर्मचारियों पर भी एक एहसान कर रहे हैं। इस तरह सभी लोग इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से समाज से जुड़े हुए हैं ।
अच्छे परिवार में जन्म लेकर, अच्छे स्कूल में दाखिला लेकर, अच्छी नौकरी प्राप्त करके, अच्छा जीवन स्तर भोगते हुए , अनजाने में , कहीं ना कहीं ,जब – तब एक दंभ भर आता है कि , सब कुछ , जो भी अच्छा हो रहा है , वह स्वयं की बुद्धि एवं परिश्रम का ही फल है। निश्चित रूप से स्वयं की बुद्धि एवं परिश्रम तो महत्वपूर्ण है ही , किंतु इसके साथ-साथ समाज की विभिन्न इकाइयां ,अपने विभिन्न स्वरूपों के साथ संपूर्ण जीवन को सहज और सरल बनाने के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान करती हैं, ताकि स्वयं की बुद्धि और परिश्रम इन मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति में ही उलझ कर न रह जाए, बल्कि कुछ अधिक उत्कृष्ट एवं व्यापक करे, ताकि उसका अंश लाभ समाज को प्राप्त हो सके घर में ,घर के बाहर ,कार्यालय इत्यादि स्थानों पर, विभिन्न व्यक्ति कई प्रकार से, एक दूसरे व्यक्ति से जुड़ते हैं। परस्पर एक दूसरे के काम में, किसी न किसी प्रकार से सहयोग कर रहे होते हैं “मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है” इस वाक्य का संदर्भ , बचपन से लेकर बड़े होने तक कई अवसरों पर बोलने और सुनने में आता ही है । किंतु इसका वास्तविक अर्थ कभी-कभी ही, कुछ ही लोगों को, दिलो-दिमाग में पता रहता है वास्तव में सामाजिक इकाइयों का ताना-बाना इतना व्यापक एवं जटिल है , कि जितना इसको समझने की कोशिश की जाए उतना ही इसमें उलझते जाते हैं। इसलिए इसका सबसे सरल अर्थ यही निकलता है कि , “मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है”
“लॉक डाउन” के समय हम सभी को यह एहसास भी हो रहा है । सुबह से लेकर शाम तक कई चीजों एवं सुविधाओं की कमी भी महसूस कर रहे हैं। इसलिए हम सभी को, हर समय यह ध्यान में रखना चाहिए कि, समाज की विभिन्न छोटी – बड़ी इकाइयों के समन्वय के साथ ही जीवन सुचारु रुप से चल पाता है । लॉक डाउन, ये भी सीख दे रहा है कि , हमें हमेशा , बिना किसी भेद भाव के, सभी का आभार व्यक्त करते हुए,आदर भी प्रकट करना चाहिए
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