किसी भी अर्थव्यवस्था में ,कई चक्र कार्य करते हैं, जो अर्थव्यवस्था को अपनी अपनी तरह से प्रभावित करने का काम करते हैं। अविकसित देशों की अर्थव्यवस्था में, गरीबी का कुचक्र, बहुत अधिक कार्यशील रहता है। कम आय,कम क्रयशक्ति, कम मांग,कम उत्पादन,कम रोजगार और फिर से कम आय का कुचक्र चल कर अर्थव्यवस्था को कमजोर ही बनाता है।
इस तरह से देश लम्बे समय तक अविकसित ही बने रहते हैं, जब तक कि, इस स्थिति से निपटने के लिए शासन व्यवस्था बहुत कुछ करने के लिए, कठोर निर्णय लेने के लिए तैयार नहीं हो। ऐसे में कुछ नीतिगत और आर्थिक स्तर पर अपरम्परागत फैसले भी लेने पड़ सकते हैं। भारत भी स्वतंत्रता के बाद से लेकर, अब तक, अविकसित अर्थव्यवस्था से, विकासशील अर्थव्यवस्था बन कर, विकसित अर्थव्यवस्था की तरह कार्य करने को सतत अग्रसर है। ताकि सभी भारत वासीयों के लिए,संतुष्ट एवं उन्नत जीवन स्तर के लिए समान अवसर उपलब्ध हों। भारत की जनसंख्या, आर्थिक रूप से ,उच्च साधन सम्पन्न ,उच्च मध्य वर्ग ,मध्यम मध्यवर्ग,निम्न मध्य वर्ग एवं गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले लोगों, के रूप में विभाजित की जा सकती है।
भारत के 130 करोड़ की जनसंख्या में ,1प्रतिशत लोग, उच्च साधन सम्पन्नता की श्रेणी में आते हैं, और लगभग 22 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं । मोटे तौर पर यह स्पष्ट होता है कि लगभग 75 प्रतिशत जनसंख्या मध्य वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है।
CBDT के 2017-18 के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 10 लाख करोड़ रुपये, आयकर के माध्यम से एकत्र हुए हैं। भारत की कुल जनसंख्या के 5.32% आयकरदाताओं द्वारा यह राशि जमा की गई है । उल्लेखनीय है कि इस राशि में भी, 62% भाग 4% लोगों द्वारा अदा किया गया है। भारत में आयकर दरें, वर्तमान समय (2017-18) में, इस प्रकार निर्धारित की गई है. 2.5 लाख रुपए सालाना आय पर कोई “आयकर ” नहीं देना होगा, 2.5 से 5 लाख रुपए सालाना आय पर, 20% एवं 10 लाख से अधिक सालाना आय पर, 30% की दर से आयकर देना होगा ।
आकड़ों के आधार पर ,कुल राजस्व में, आयकर की भागीदारी 20% आंकी गई है। आयकर दरों के अनुसार, आयकरदाताओं का राजस्व प्रतिशत इस प्रकार से है।
- 0-5 लाख रुपए की दर में 10%राजस्व
- 5-10 लाख रुपए की दर में 15%राजस्व
- 10-20 लाख रुपए की दर में 12%राजस्वस
- 20 लाख रुपए सालाना से अधिक आय पर 63% राजस्व एकत्रित किया गया है।
- उपलब्ध आकड़ों के आधार पर, भारत के, लगभग 75% मध्य वर्ग का भी वर्गीकरण किया जा सकता है।
- 0-5 लाख रुपये सालाना आय – निम्न मध्यवर्ग
- 5-20 लाख रुपये सालाना आय – मध्यम मध्यवर्ग
- 20 लाख रुपये से अधिक सालाना आय – उच्च मध्यवर्ग
आकड़ों के आधार पर यह भी स्पष्ट हो जाता है कि, उच्च मध्य वर्ग एवं उच्चतमवर्ग द्वारा ही राजस्व का काफी बड़ा भाग एकत्रित किया जाता है। भारत के आर्थिक स्तर पर बहुत बड़े एवं मुख्य वर्ग, “मध्य वर्ग ” का , आयकर के माध्यम से, कुल राजस्व में, कोई उल्लेखनीय योगदान नहीं है।जबकि ,भारत की अर्थव्यवस्था में, मौद्रिक नीति में, बाजार की रणनीति इत्यादि में, इसी मध्य वर्ग को ध्यान में रखकर निर्णय लिये जाते हैं। अतः आवश्यक हो जाता है कि इस मध्य वर्ग की, आय, क्रयशक्ति, वैचारिक एवं सामाजिक शक्ति इत्यादि को विवेचनात्मक रूप से समझने की कोशिश की जाए। भारत के इसी वर्ग के द्वारा बहुत बड़े पैमाने पर, सभी तरह की आर्थिक गतिविधियों को संचालित किया जाता है। छोटे छोटे स्तर पर किया गया, मुद्रा विनिमय, अर्थव्यवस्था पर कई गुना अधिक, सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करता है। इस वर्ग द्वारा की गई छोटी छोटी बचत, उत्पादक और अनुत्पादक दोनों ही रूपों में सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में अपना प्रभाव डालती है। भारत की अर्थव्यवस्था में, सकारात्मक रूप से, प्रभावी मध्यम मध्य वर्ग , वह वर्ग है जो, शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कार पर बहुत ज्यादा बल देता है।
इस वर्ग की आय सीमित है,और क्रयशक्ति बहुत संकुचित होती है । इस वर्ग की महिलाएं ,सामान्यतः पढ़ीलिखी, जागरूक और समझदार होती हैं, आर्थिक स्तर पर सहयोग करने में भी सक्षम होती हैं, किन्तु इसके लिए वे, “सम्मानीय काम” करना ही पसंद करती हैं।
ऊँचे सपने देखने वाला, बहुत बड़ा और प्रभावी बाजार बनने को आतुर यह वर्ग, मांग और पूर्ति के सिद्धान्त के आधार पर, उत्पादन, रोजगार, व्यापार, देसी पर्यटन इत्यादि में सकारात्मक वृद्धि के माध्यम से, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को बहुत तेजी से, और अधिक सुदृढ़ करने क्षमता रखता है। प्राप्त आकड़ों के अनुसार, कुल राजस्व में, आयकर की भागीदारी 20%.है, उसमे केवल 4% आयकरदाताओं का हिस्सा ही लगभग, 62% होता है । मध्यम मध्य वर्ग का दायरा तो बहुत बड़ा है लेकिन, आयकर के माध्यम से योगदान तो न्यूनतम सा ही है। जबकि आयकर का बोझ और ताना बाना बहुत व्यापक स्तर पर महसूस किया जाता है। वर्तमान आयकर व्यवस्था में थोड़े संशोधनों के साथ, इस व्यवस्था को सापेक्षिक बनाया जा सकता है। मध्य वर्ग की क्रयशक्ति बढ़ा कर, इसका गुणात्मक प्रभाव अर्थव्यवस्था पर डाला जा सकता है। विशेषज्ञों की सहायता से ,आयकर दरों को इस प्रकार भी पुनर्निर्धारित किया जा सकता है…..
- 0-10 लाख रुपये सालाना आय करमुक्त ,व
- 10-25 लाख रुपये सालाना आय पर 25%
इसे ” आयकर ” के स्थान पर “करखाता” के रूप में स्थापित किया जा सकता है ,जो 20-25 वर्ष के बाद, “करखाता धारक” को, जरूरत के हिसाब से वापस मिल सकता है।
ऐसा करने से निश्चित रूप से मध्यम मध्य वर्ग में सरकार के प्रति एक नया विश्वास पैदा होगा कि, उसकी भी परेशानी समझी गई है, क्योंकि पिछले 70 सालों से यही वर्ग, हमेशा खुद को ठगा सा महसूस करता रहा है । सरकार के प्रति विश्वास पैदा होने पर सामान्यतया , मध्य वर्ग कथित, आयकर की चोरी से भी बचेगा , अनुत्पादक बचत के रूप में, मुद्रा को अपने पास भी नहीं रोकेगा । यह वर्ग , अपनी मुद्रा को बाजार में विनिमय के माध्यम से प्रसारित एवं संचारित कर सकता है, और अप्रत्यक्ष करों के माध्यम से , GST के प्रभावी होने के कारण, सरकार के पास “राजस्व संग्रह” में सकारात्मक योगदान भी दे सकता है । “करखाता” के माध्यम से, सरकार के पास इनका, आयकर भी एकत्रित हो रहा है, ताकि सरकार को बुनियादी खर्चों में कोई कमी करने की भी जरूरत नहीं है। अब क्रयशक्ति में इजाफा होने के कारण, यह वर्ग भी खुले हाथ से खर्च कर के, बढ़ती मांग के, आधार पर, बाजार,उत्पादन और रोजगार इत्यादि को कई गुना सकारात्मक प्रभावी बना कर,अर्थव्यवस्था को इतना सुदृढ़ बना सकता है कि, 20-25 साल के बाद, खुद के “करखाता” से भी अपना पैसा वापस लेने की जरुरत नहीं होगी, क्योंकि सुदृढ़ अर्थव्यवस्था में, सामान्य तौर पर सभी लोग सम्पन्न होते हैं। उदाहरण के लिए, करोड़ों सम्पन्न लोगों ने, खुद ही गैस सब्सिडी छोड़ दी ।
इसी प्रकार, मध्य वर्ग की महिलाओं की क्षमता का उपयोग करने के लिए, सरकार और निजी क्षेत्र से संबंधित संस्थाओं द्वारा समाज में व्याप्त विभिन्न बुराइयों और जरुरतों के अनुसार ,निरीक्षण और समाधान के लिए, प्रशिक्षण देकर के पारीश्रमिक दिया जाता है तो, व्यापक रूप से इस वर्ग की क्रयशक्ति बढ़ेगी, अतिरिक्त आय बाजार में आयेगी अर्थव्यवस्था को पोषित करेगी । ऐसा करने पर, राष्ट्र न केवल आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होगा अपितु सामाजिक बुराइयों से भी मुक्त होगा । निम्न मध्य वर्ग पर, किया गया विनियोग उनके जीवन स्तर पर सकारात्मक प्रभाव डालता है मध्यम मध्य वर्ग पर किया गया विनियोग अर्थव्यवस्था के सभी तंत्रों को गुणात्मक रूप से प्रभावित करते हुए सुदृढ़ बनाता है । उच्च मध्य वर्ग पर किया गया विनियोग ,विदेशी अर्थव्यवस्थाओं को भी पुष्ट करता है । वर्तमान समय की, तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के अंतर्गत, विशेषज्ञता के साथ किया गया, यह प्रयोग निश्चित तौर पर भारत को विश्व की एक सम्पन्न अर्थव्यवस्था बना सकता है ।
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