भारतीय नारी

सती सावित्री, कैकयी , कौशल्या , सीता - उर्मिला, राधा रुक्मणि, शकुंतला, विद्योत्तमा, और न जाने कितने ही नाम भारतीय नारी की शक्ति को विभिन्न रूपों को दर्शाते रहे हैं और सम्पूर्ण भारतीय जनमानस के प्रेरणास्तोत्र एवं वंदनीय रहे हैं।

भारतीय संस्कृति में, सर्व गुण सम्पन्न शक्ति स्वरूपा माँ जगदम्बा, सदा – सर्वदा, वंदनीया एवं पूजनीया होने के अतिरिक्त, भारत की नारी को, हर युग में परिभाषित भी करती है। सती सावित्री, कैकयी , कौशल्या , सीता – उर्मिला, राधा रुक्मणि, शकुंतला, विद्योत्तमा, और न जाने कितने ही नाम भारतीय नारी की शक्ति को विभिन्न रूपों को दर्शाते रहे हैं और सम्पूर्ण भारतीय जनमानस के प्रेरणास्तोत्र एवं वंदनीय रहे हैं। वैदिक युग से चली आ रही इस परंपरा में , मध्ययुगीन भारत में गहरा आघात हुआ। आक्रांताओं द्वारा नारी शक्ति का उत्पीड़न किया गया। विदेशी संस्कृति को जबरन थोपा गया। भारत की सबला नारी को अबला नारी के रूप में परिवर्तित करने का कुत्सित प्रयास किया गया। लग भग १००० साल की गुलामी के दौर में भारतीय नारी के अपमान और तिरस्कार के दौरान भी , भारत के सभी क्षेत्रों से समय समय पर , भारत की नारियों ने, अपना गरिमामय रूप दर्शा कर, भारतीय नारी चेतना की जोत को बुझने से बचाया है। मेवाड़ की मीरा बाई ने भक्ति दिखाई।

महाराष्ट्र में जीजाबाई ने मातृ शक्ति के माध्यम से शिवा को छत्रपति शिवाजी बनाया। झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई ने शत्रु पर सामने से वार कर के वीरगति पाई। मध्य भारत की अहिल्याबाई होल्कर ने न्याय की पराकाष्ठा दिखाई। पूर्व भारत में रानी गांडिल्यू ने अपने क्षेत्र में अंग्रेज़ों से हार नहीं मानी और लगातार लड़ती रहीं। कित्तूर की रानी चेनम्मा ने, अंग्रेज़ों को दो बार परास्त करके अपने राज्य की रक्षा की, किन्तु तीसरी बार अंग्रेज़ों ने षड़यंत्र कर के रानी के कुछ सैनिकों को अपनी ओर मिला लिया और रानी के युद्ध में शहीद होने के बाद ही अँगरेज़ कित्तूर के किले को जीत पाए। राजपूत रानी पद्मिनी ने जौहर की ज्वाला से खिलजी को परास्त किया। नव विवाहित हाड़ी रानी ने , औरंगज़ेब की सेना को युद्ध में परास्त करने के लिए, पति की एकाग्रता को सुनिश्चित करने और स्वयं के प्रति मोह विछिन्न करने के लिए , अपना शीश काट कर निशानी के तौर पर रणक्षेत्र में भेज दिया था।

भारत के विभिन्न अंचलों में ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं जो भारत की नारी के सशक्त रूप का प्रमाण है।

क्षोभ का विषय है की सम्पूर्ण भारतीय जनमानस को कुछ ही नामों के अलावा अन्य महिलाओं के बारे में कोई उल्लेखनीय जानकारी ही नहीं है । लेकिन स्थानीय स्तर पर नारी के भिन्न भिन्न शक्ति स्वरूपों लोग आज भी नमन और वंदन करते हैं।

स्वतंत्रता के उपरान्त, संविधान प्रदत्त समानता के मौलिक अधिकार मिलने के कारण, समाज में व्याप्त, मध्ययुगीन नारी उपेक्षा की सोच में परिवर्तन आया है। शिक्षा एवं रोज़गार में सामान अवसर उपलब्ध होने के कारण स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद व्यापक रूप से माता पिता भी अपनी बेटियों को खुले आसमान में उड़ने के लिए प्रोत्साहित करने लगे हैं। यूँ तो सदियों की संकुचित मानसिकता एकाएक परिवर्तित नहीं हो सकती, किन्तु संविधान एवं सरकार के प्रोत्साहन से समाज के नज़रिये में व्यापक बदलाव भी आया है।

आज अग्नि पुत्री के रूप में टेस्सी थॉमस , भारत में मिसाइल प्रोजेक्ट देख रही हैं। तो किरण मजूमदार शॉ ने उद्योग जगत में अपना स्थान बनाया है, खेल जगत में तो मैरी कॉम , सान्या मिर्ज़ा, पी टी उषा , साइना नेहवाल , पी वी सिंधू , इत्यादि अनेक नाम उल्लेखनीय हैं , पर्यावरण जागरूकता फ़ैलाने वाली सालूमरादा थिमक्का हों या महिलाओं में आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ाने वाली मदुरै चिन्ना पिल्लै हों भारत की रक्षा की ज़िम्मेदारी उठाने वाली निर्मला सीतारमण हों अथवा भारत की साख पूरे विश्व में बढ़ाने वाली सुषमा स्वराज हों। यह सभी महिलाएँ भारत की सशक्त नारी के विभिन्न स्वरुप हैं सबकी प्रेरणा स्त्रोत हैं।

भारत की कानून व्यवस्था बनाने वाली संसद में लोकसभा अध्यक्ष के रूप में श्रीमती मीरा कुमार और श्रीमती सुमित्रा महाजन जी ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

भारत की इस पावन धरा पर एक तरफ अति साधारण परिवार की बहुत ही सामान्य महिला श्री मति लक्ष्मी बाई केलकर ने राष्ट्र प्रेम की अलख जगा , महिलाओं में मातृत्व , कर्तत्व, नेतृत्व को पोषित करते हुए विश्वव्यापी महिला संगठन खड़ा कर दिया जो आज भी समाज में जागृति व विस्तार में संलग्न है , और दूसरी ओर प्रथम प्रधान मंत्री की पुत्री श्रीमति इंदिरा गाँधी ने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की महिला प्रधान मंत्री बनकर , पूर्वी पाकिस्तान को पश्चिमी पाकिस्तान के अत्याचारों से मुक्ति दिला कर , विश्व की सम्मानित एवं ताकतवर प्रधानमंत्री के रूप में पहचान बनाई। भारत में सभी महिलाएँ अपने अपने स्तर पर अपना उत्कृष्ट देने की क्षमता रखती हैं। मातृ शक्ति के रूप में तो, राष्ट्र निर्माण की ज़िम्मेदारी भी, महिलाएँ सदा से सहर्ष निभा रही हैं। किन्तु आधुनिक युग एवं वैश्विकरण के बढ़ते दबाव के अंतर्गत आज की महिलाएँ समाज से तुलनात्मक रूप से उदार सोच की अपेक्षा भी रखती हैं ताकि नारी रुपी , सरल , अविरल , रसभरी , सुरसरी भावी पीढ़ी को शक्ति – संस्कारों से सिंचित करके पुष्ट करती रहे।