गंगा देवनदी है, जीवनदायिनी है, सुख दायिनी है।

उद्गम स्थल से निकली, मनमोहिनी गंगधार, मैदानों में आकर, मानव के पापों को भी, अपने आंचल में समेटती जा रही है।

“गंगा” का नाम ही, तन-मन में सहज रुप से, शीतलता और पवित्रता की अनुभूति देने लगता है। गंगा देवनदी है, जीवनदायिनी है, सुख दायिनी है।

उद्गम स्थल से निकली, मनमोहिनी गंगधार, मैदानों में आकर, मानव के पापों को भी, अपने आंचल में समेटती जा रही है। 2600 किलोमीटर से अधिक, लंबा सफर तय करके गंगासागर तक जाने तक, ममता सी दुग्ध धारा से, ‘मां गंगा’ सभी जीव – जंतु, वनस्पतियों के साथ-साथ हम मनुष्यों के जीवन को भी, सहस्त्राब्दियों से पोषित किए जा रही है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए, कठिन तप करके, मां गंगा की आराधना की। शंकर भगवान को प्रसन्न किया। शिव ने प्रसन्न होकर मां गंगा के वेग को, अपनी जटाओं से संभाला और फिर धरती पर प्रवाहित किया

हिमालय स्थित, गंगोत्री ग्लेशियर, भारत के उत्तराखंड में अवस्थित है। जहां गोमुख से, “गंगा” का उद्गम होता है। यह स्थान, इतना रमणीक एवं पवित्र है कि इंसान की नकारात्मक प्रवृतियां खुद-ब-खुद यहां विलुप्त सी हो जाती हैं। मन, परमपिता परमेश्वर के, अद्भुत चित्रांकन से भाव विभोर हुए रहता है।

हजारों वर्ष पहले, “भगीरथ” ने इन्हीं स्थानों पर कठोर तप किया, ताकि गंगा का अवतरण हो सके। इसीलिए यहां गंगा “भागीरथी” कहलाती है। शिव की जटाओं से निकली धाराएं, देवप्रयाग में मिलकर, “गंगा” के रूप में, अपने पूरे वेग और अल्हड़ता के साथ नीचे उतरने लगती हैं।

ऋषिकेश इसका मुख्य पड़ाव माना जाता है, जहां सामान्यतः पर्यटन, बहुत अधिक शुरू हो जाता है। यहां धार्मिक पर्यटन तो है ही, इसके अलावा राफ्टिंग इत्यादि की वजह से, एडवेंचर के लिए भी ऋषिकेश बहुत प्रसिद्ध है। देसी विदेशी लोगों के लिए, अध्ययन – अध्यापन, तप – तपस्या के लिए भी, अनेकों आश्रम यहां स्थित है। यहां से गंगा किनारे भीड़ शुरू हो जाती है। यहां से उतरकर गंगा मैदानी इलाकों में प्रवेश करती है।

हरिद्वार इसका प्रमुख स्थान माना गया है। जहां साक्षात् “गंगा मैया” अपनी संतानों को, अपने विशाल पाट के साथ, स्नेह लुटाती हैं। धार्मिक नगरी कहलाने वाला, “हरिद्वार” समस्त भारतवासियों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। विश्व विख्यात कुंभ मेला भी यहां होता है। यहां की अर्थव्यवस्था का मुख्य कारक एवं आधार, गंगा मैया के स्नान दर्शन के लिए, आने वाले भक्त व आयोजक ही हैं। हमने मूर्खता एवं लापरवाही के कारण, स्वच्छता के भाव को दरकिनार कर दिया। जिस कारण, “गंगा” में अपशिष्ट भी डाला जाने लगा और गंगा को “मैला” किया जाने लगा। पिछले कई वर्षों से, गंगा की सफाई व आसपास के क्षेत्रों की सफाई को भी, एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया जाने लगा है ।

“कोविड-19” के कारण हुए, विश्वव्यापी “लॉक डाउन” ने प्रकृति को, शुद्ध एवं पुनर्जीवित होने का शुभ अवसर दे दिया है। सारा पर्यावरण, शुद्धिकरण की प्रक्रिया में आ गया है। जमीन पर कचरा कम होने लगा है। आकाश में तारे स्पष्ट नजर आने लगे हैं। सूर्य की किरने प्रदूषण रहित हो गई हैं। वायु शुद्ध हो रही है। नदियां स्वच्छ और निर्मल हो रही हैं।

हमारी गलतियों से, मैली हुई “गंगा”, अब अपने शुद्ध, स्वच्छ एवं निर्मल स्वरूप में बह रही है। वास्तव में, गंगा सफाई अभियान की, जरूरत नहीं है, बल्कि स्वयं पर नियंत्रण एवं नियमन की आवश्यकता है।

हरिद्वार से निकलकर गंगा, अपने रूप सौंदर्य में, हरियाली को समाहित करती हुई, जीव-जंतुओं को पोषित करती हुई, अपने विभिन्न तटों पर, नए-नए नगर बसाती हुई, पर्यटन धरोहरें बिछाती हुई, “प्रयागराज” पहुंचती है। प्रयागराज में, यमुना और गुप्त सरस्वती के मिलन के साथ, फिर से एक बहुत बड़े, तीर्थ-स्थल के रूप में विख्यात होती है। जहां बड़े-बड़े ऋषियों-मुनियों ने अपने कठोर तप से, इस पावन भूमि को पवित्र किया ।

अति प्राचीन नगरी, भोले – भंडारी , “बाबा विश्वनाथ” की नगरी के तटबंध को नमन करती है, “गंगा” इसके बाद, भक्तों की मोक्ष दायिनी गंगा मैया , “राजा सगर” और उनके पुत्रों का उद्धार करने के लिए, “गंगासागर” की राह पकड़ती है।

नमामि गंगे प्रोजेक्ट एवं गंगा की “अर्थव्यवस्था प्रवाह” को और अधिक, गति देने के लिए, पिछले दो-तीन वर्षो से, बनारस से कोलकाता तक, “क्रूज़” भी चलाया जाने लगा है। यह क्रूज़ पर्यटन की दृष्टि से भी, अपना बहुत अधिक सकारात्मक प्रभाव छोड़ रहा है। गंगा की खूबसूरती को निहारता हुआ , यह क्रूज़ यात्रियों को भी, अद्भुत आनंद का अनुभव करवा रहा है।

कलकत्ता में, ‘हुगली एवं पद्मा’ नदियों के साथ मिलकर गंगासागर जाने तक, सुंदरबन का बहुत बड़ा डेल्टा, गंगा द्वारा ही बनाया जाता है। गंगासागर पहुंचकर, भगीरथ की तपस्या का फल, “पतित- पावनी मां गंगा” राजा सगर के पुत्रों को मोक्ष प्रदान करके देती हैं। अंततः मानव निर्मित विभाजन रेखा के तहत, बांग्लादेश होती हुई, “गंगा नदी”, बंगाल की खाड़ी में समा जाती हैं।