झांसी की रानी – मणिकर्णिका
खेल – खेल में खेल रही
भाले, तीर – तलवारों से
रूप – सौंदर्य, बुद्धि-चातुर्य भरी
ना – डरती, ललकारो से
बुद्धि – बलशाली – मणिकर्णिका
राष्ट्रप्रेम की, फूटी चिंगारी
धधक रही, अब ज्वाला सी
मातृ-धर्म, निभाती नारी
रोम रोम में, रम रही झांसी
झांसी बचाती – मणिकर्णिका
रण – गुण, धन-जन संतुलन
थर्राये दुश्मन भी, देख ऐसा संगठन
अंग्रेजों से छेड़ा जब, राष्ट्र – रण
तात्या – बंदा भी, चले मिलाकर कदम
सेना सजाती – मणिकर्णिका
जोशीली – गर्वीली, सिंह – स्वरूपिणी
आंचल में पुत्र समाए, घुड़सवारीनी
बिजली सी, तलवार चलाती, दुष्ट – संहारिणी
अंग्रेजों को धूल चटाती, “झांसी की रानी”
नेतृत्व दिखाती – मणिकर्णिका
जान पर खेल जाती – मणिकर्णिका
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